सूचना का अधिकार(RTI)


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https://rtionline.gov.in  ( File Online RTI related to central Govt)

क्या है सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार अधिनियम भारत की संसद द्वारा पारित एक कानून है, जो 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ. यह कानून भारत के  सभी नागरिकों को सरकारी फाइलों/रिकॉडर्‌‌स में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार देता है. जम्मू एवं कश्मीर को छोड़ कर भारत के सभी भागों में यह अधिनियम लागू है. सरकार के संचालन और अधिकारियों/कर्मचारियों के वेतन के मद में खर्च होने वाली रकम का प्रबंध भी हमारे-आपके द्वारा दिए गए करों से ही किया जाता है. यहां तक कि एक रिक्शा चलाने वाला भी जब बाज़ार से कुछ खरीदता है तो वह बिक्री कर, उत्पाद शुल्क इत्यादि के रूप में टैक्स देता है. इसलिए हम सभी को यह जानने का अधिकार है कि उस धन को किस प्रकार खर्च किया जा रहा है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है.

किससे और क्या सूचना मांग सकते हैं
सभी इकाइयों/विभागों, जो संविधान या अन्य कानूनों या किसी सरकारी अधिसूचना के  अधीन बने हैं अथवा सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित किए जाते हों, वहां से संबंधित सूचना मांगी जा सकती है.

  • सरकार से कोई भी सूचना मांग सकते हैं.
  • सरकारी निर्णय की प्रति ले सकते हैं.
  • सरकारी दस्तावेजों का निरीक्षण कर सकते हैं.
  • सरकारी कार्य का निरीक्षण कर सकते हैं.
  • सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले सकते हैं
किससे मिलेगी सूचना और कितना आवेदन शुल्क
इस कानून के तहत प्रत्येक सरकारी विभाग में जन/लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के पद का प्रावधान है. आरटीआई आवेदन इनके पास जमा करना होता है. आवेदन के साथ केंद्र सरकार के विभागों के लिए 10 रुपये का आवेदन शुल्क देना पड़ता है. हालांकि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग शुल्क निर्धारित हैं. सूचना पाने के लिए 2 रुपये प्रति सूचना पृष्ठ केंद्र सरकार के विभागों के लिए देने पड़ते हैं. यह शुल्क विभिन्न राज्यों के लिए अलग-अलग है. आवेदन शुल्क नकद, डीडी, बैंकर चेक या पोस्टल आर्डर के माध्यम से जमा किया जा सकता है. कुछ राज्यों में आप कोर्ट फीस टिकटें खरीद सकते हैं और अपनी अर्ज़ी पर चिपका सकते हैं. ऐसा करने पर आपका शुल्क जमा माना जाएगा. आप तब अपनी अर्ज़ी स्वयं या डाक से जमा करा सकते हैं.
आवेदन का प्रारूप क्या हो
केंद्र सरकार के विभागों के लिए कोई निर्धारित प्रारूप नहीं है. आप एक सादे कागज़ पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही आवेदन बना सकते हैं और इसे पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा कर सकते हैं. (अपने आवेदन की एक प्रति अपने पास निजी संदर्भ के लिए अवश्य रखें)
सूचना प्राप्ति की समय सीमा
पीआईओ को आवेदन देने के 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए. यदि आवेदन सहायक पीआईओ को दिया गया है तो सूचना 35 दिनों के भीतर मिल जानी चाहिए.
सूचना न मिलने पर क्या करे
यदि सूचना न मिले या प्राप्त सूचना से आप संतुष्ट न हों तो अपीलीय अधिकारी के पास सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 19(1) के तहत एक अपील दायर की जा सकती है. हर विभाग में प्रथम अपीलीय अधिकारी होता है. सूचना प्राप्ति के 30 दिनों और आरटीआई अर्जी दाखिल करने के 60 दिनों के भीतर आप प्रथम अपील दायर कर सकते हैं.
द्वितीय अपील क्या है?
द्वितीय अपील आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने का अंतिम विकल्प है. द्वितीय अपील सूचना आयोग के पास दायर की जा सकती है. केंद्र सरकार के विभागों के विरुद्ध केंद्रीय सूचना आयोग है और राज्य सरकार के विभागों के विरुद्ध राज्य सूचना आयोग. प्रथम अपील के निष्पादन के 90 दिनों के भीतर या उस तारीख के  90 दिनों के भीतर कि जब तक प्रथम अपील निष्पादित होनी थी, द्वितीय अपील दायर की जा सकती है. अगर राज्य सूचना आयोग में जाने पर भी सूचना नहीं मिले तो एक और स्मरणपत्र राज्य सूचना आयोग में भेज सकते हैं. यदि फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप इस मामले को लेकर हाईकोर्ट जा सकते हैं.
सवाल पूछो, ज़िंदगी बदलो
 सूचना कौन देगा
प्रत्येक सरकारी विभाग में जन सूचना अधिकारी (पीआईओ - PIO ) का पद होता है. आपको अपनी अर्जी उसके  पास दाख़िल करनी होगी. यह उसका उत्तरदायित्व है कि वह उस विभाग के  विभिन्न भागों से आप द्वारा मांगी गई जानकारी इकट्ठा करे और आपको प्रदान करे. इसके अलावा कई अधिकारियों को सहायक जन सूचना अधिकारी के  पद पर नियुक्त किया जाता है. उनका कार्य जनता से आरटीआई आवेदन लेना और पीआईओ के  पास भेजना है.
आरटीआई आवेदन कहां जमा करें
आप अपनी अर्जी-आवेदन पीआईओ या एपीआईओ के पास जमा कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है. मतलब यह कि आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई काउंटर पर अपना आरटीआई आवेदन और शुल्क जमा करा सकते हैं. वहां आपको एक रसीद भी मिलेगी. यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वह उसे संबंधित पीआईओ के  पास भेजे.
यदि पीआईओ या संबंधित विभाग आरटीआई आवेदन स्वीकार न करने पर
ऐसी स्थिति में आप अपना आवेदन डाक द्वारा भेज सकते हैं. इसकी औपचारिक शिक़ायत संबंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें. सूचना आयुक्त को उस अधिकारी पर 25,000 रुपये का अर्थदंड लगाने का अधिकार है, जिसने आवेदन लेने से मना किया था.
पीआईओ या एपीआईओ का पता न चलने पर
यदि पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप आवेदन विभागाध्यक्ष को भेज सकते हैं. विभागाध्यक्ष को वह अर्जी संबंधित पीआईओ के पास भेजनी होगी.
अगर पीआईओ आवेदन न लें
पीआईओ आरटीआई आवेदन लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता. भले ही वह सूचना उसके विभाग/कार्यक्षेत्र में न आती हो. उसे अर्जी स्वीकार करनी होगी. यदि आवेदन-अर्जी उस पीआईओ से संबंधित न हो तो वह उसे उपायुक्त पीआईओ के  पास पांच दिनों के भीतर अनुच्छेद 6(3) के तहत भेज सकता है.
क्या सरकारी दस्तावेज़ गोपनीयता क़ानून 1923 सूचना के अधिकार में बाधा है नहीं. सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अनुच्छेद 22 के अनुसार सूचना का अधिकार क़ानून सभी मौजूदा क़ानूनों का स्थान ले लेगा.
अगर पीआईओ सूचना न दें
एक पीआईओ सूचना देने से मना उन 11 विषयों के लिए कर सकता है, जो सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद आठ में दिए गए हैं. इनमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचना, देश की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों की दृष्टि से हानिकारक सूचना, विधायिका के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाली सूचनाएं आदि. सूचना का अधिकार अधिनियम की दूसरी अनुसूची में उन 18 अभिकरणों की सूची दी गई है, जिन पर यह लागू नहीं होता. हालांकि उन्हें भी वे सूचनाएं देनी होंगी, जो भ्रष्टाचार के आरोपों और मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़ी हों.
कहां कितना आरटीआई शुल्क
  प्रथम अपील/द्वितीय अपील की कोई फीस नहीं है. हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने फीस का प्रावधान किया है. विभिन्न राज्यों में सूचना शुल्क/अपील शुल्क का प्रारूप अलग-अलग है.कहीं आवेदन के लिए शुल्क 10 रुपये है तो कहीं 50 रुपये. इसी तरह दस्तावेजों की फोटोकॉपी के लिए कहीं 2 रुपये तो कहीं 5 रुपये लिए जाते हैं.
क्या फाइल नोटिंग मिलता है
फाइलों की टिप्पणियां (फाइल नोटिंग) सरकारी फाइल का अभिन्न हिस्सा हैं और इस अधिनियम के तहत सार्वजनिक की जा सकती हैं. केंद्रीय सूचना आयोग ने 31 जनवरी 2006 के अपने एक आदेश में यह स्पष्ट कर दिया है.
सूचना क्यों चाहिए, क्या उसका कारण बताना होगा
बिल्कुल नहीं. कोई कारण या अन्य सूचना केवल संपर्क विवरण (नाम, पता, फोन नंबर) के अतिरिक्त देने की ज़रूरत नहीं है. सूचना क़ानून स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जाएगा.


कैसे करे सूचना के लिए आवदेन एक उदाहरण से समझे 
 यह क़ानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है? कोई अधिकारी क्यों अब तक आपके रुके काम को, जो वह पहले नहीं कर रहा था, करने के लिए मजबूर होता है और कैसे यह क़ानून आपके काम को आसानी से पूरा करवाता है इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं.

एक आवेदक ने राशन कार्ड बनवाने के लिए आवेदन किया. उसे राशन कार्ड नहीं दिया जा रहा था. लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत आवेदन दिया. आवेदन डालते ही, उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड दे दिया गया. आवेदक ने निम्न सवाल पूछे थे:
1. मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए 10 नवंबर 2009  को अर्जी दी थी. कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक प्रगति रिपोर्ट बताएं अर्थात मेरी अर्जी किस अधिकारी के पास कब पहुंची, उस अधिकारी के पास यह कितने समय रही और उसने उतने समय तक मेरी अर्जी पर क्या कार्रवाई की?
2. नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड कितने दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था. अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है. कृपया उन अधिकारियों के  नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया?
3. इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के  लिए क्या कार्रवाई की जाएगी? वह कार्रवाई कब तक की जाएगी?
4. अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जाएगा?
आमतौर पर पहले ऐसे आवेदन कूड़ेदान में फेंक दिए जाते थे. लेकिन सूचना क़ानून के तहत दिए गए आवेदन के संबंध में यह क़ानून कहता है कि सरकार को 30 दिनों में जवाब देना होगा. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है. ज़ाहिर है, ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना अधिकारियों के लिए आसान नहीं होगा.
पहला प्रश्न है : कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं.
कोई उन्नति हुई ही नहीं है. लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है. वरन यह काग़ज़ पर ग़लती स्वीकारने जैसा होगा.
अगला प्रश्न है : कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया.
यदि सरकार उन अधिकारियों के  नाम व पद बताती है, तो उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है. एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के  प्रति का़फी सतर्क होता है. इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है.
घूस को मारिए घूंसा
 कैसे यह क़ानून आम आदमी की रोज़मर्रा की समस्याओं (सरकारी दफ़्तरों से संबंधित) का समाधान निकाल सकता है. वो भी, बिना रिश्वत दिए. बिना जी-हुजूरी किए. आपको बस अपनी समस्याओं के बारे में संबंधित विभाग से सवाल पूछना है. जैसे ही आपका सवाल  संबंधित विभाग तक पहुंचेगा वैसे ही संबंधित अधिकारी पर क़ानूनी तौर पर यह ज़िम्मेवारी आ जाएगी कि वो आपके सवालों का जवाब दे. ज़ाहिर है, अगर उस अधिकारी ने बेवजह आपके काम को लटकाया है तो वह आपके सवालों का जवाब भला कैसे देगा.

आप अपना आरटीआई आवेदन (जिसमें आपकी समस्या से जुड़े सवाल होंगे) संबंधित सरकारी विभाग के लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के पास स्वयं जा कर या डाक के द्वारा जमा करा सकते हैं. आरटीआई क़ानून के मुताबिक़ प्रत्येक सरकारी विभाग में एक लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना आवश्यक है. यह ज़रूरी नहीं है कि आपको उस पीआईओ का नाम मालूम हो. यदि आप प्रखंड स्तर के किसी समस्या के बारे में सवाल पूछना चाहते है तो आप क्षेत्र के बीडीओ से संपर्क कर सकते हैं. केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों के पते जानने के लिए आप इंटरनेट की भी मदद ले सकते है. और, हां एक बच्चा भी आरटीआई क़ानून के तहत आरटीआई आवेदन दाख़िल कर सकता है.


 सूचना ना देने पर अधिकारी को सजा 

स्वतंत्र भारत के  इतिहास में पहली बार कोई क़ानून किसी अधिकारी की अकर्मण्यता/लापरवाही के प्रति जवाबदेही तय करता है और इस क़ानून में आर्थिक दंड का भी प्रावधान है.  यदि संबंधित अधिकारी समय पर सूचना उपलब्ध नहीं कराता है तो उस पर 250 रु. प्रतिदिन के हिसाब से सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माना लगाया जा सकता है. यदि दी गई सूचना ग़लत है तो अधिकतम 25000 रु. तक का भी जुर्माना लगाया जा सकता है. जुर्माना आपके आवेदन को ग़लत कारणों से नकारने या ग़लत सूचना देने पर भी लगाया जा सकता है. यह जुर्माना उस अधिकारी के  निजी वेतन से काटा जाता है.
सवाल  :  क्या पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि आवेदक को दी जाती है?
जवाब  :   नहीं, जुर्माने की राशि सरकारी खजाने में जमा हो जाती है. हालांकि अनुच्छेद 19 के तहत, आवेदक मुआवज़ा मांग सकता है.
आरटीआई के इस्तेमाल में समझदारी दिखाएं
कई बार आरटीआई के इस्तेमाल के बाद आवेदक को परेशान किया किया जाता है  या झूठे मुक़दमे में फंसाकर उनका मानसिक और आर्थिक शोषण किया किया जाता है . यह एक गंभीर मामला है और आरटीआई क़ानून के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद से ही इस तरह की घटनाएं सामने आती रही हैं. आवेदकों को धमकियां दी गईं, जेल भेजा गया. यहां तक कि कई आरटीआई कार्यकर्ताओं पर कातिलाना हमले भी हुए. झारखंड के ललित मेहता, पुणे के सतीश शेट्टी जैसे समर्पित आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या तक कर दी गई.
इन सब बातों से घबराने की ज़रूरत नहीं है. हमें इस क़ानून का इस्तेमाल इस तरह करना होगा कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. मतलब अति उत्साह के बजाय थोड़ी समझदारी दिखानी होगी. ख़ासकर ऐसे मामलों में जो जनहित से जुड़े हों और जिस सूचना के सार्वजनिक होने से ताक़तवर लोगों का पर्दाफाश होना तय हो, क्योंकि सफेदपोश ताक़तवर लोग ख़ुद को सुरक्षित बनाए रखने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. वे साम, दाम, दंड और भेद कोई भी नीति अपना सकते हैं. यहीं पर एक आरटीआई आवेदक को ज़्यादा सतर्कता और समझदारी दिखाने की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आपको एक ऐसे मामले की जानकारी है, जिसका सार्वजनिक होना ज़रूरी है, लेकिन इससे आपकी जान को ख़तरा हो सकता है. ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे? हमारी समझ और सलाह के मुताबिक़, आपको ख़ुद आरटीआई आवेदन देने के बजाय किसी और से आवेदन दिलवाना चाहिए. ख़ासकर उस ज़िले से बाहर के किसी व्यक्ति की ओर से. आप यह कोशिश भी कर सकते हैं कि अगर आपके कोई मित्र राज्य से बाहर रहते हों तो आप उनसे भी उस मामले पर आरटीआई आवेदन डलवा सकते हैं. इससे होगा यह कि जो लोग आपको धमका सकते हैं, वे एक साथ कई लोगों या अन्य राज्य में रहने वाले आवेदक को नहीं धमका पाएंगे. आप चाहें तो यह भी कर सकते हैं कि एक मामले में सैकड़ों लोगों से आवेदन डलवा दें. इससे दबाव काफी बढ़ जाएगा. यदि आपका स्वयं का कोई मामला हो तो भी कोशिश करें कि एक से ज़्यादा लोग आपके मामले में आरटीआई आवेदन डालें. साथ ही आप अपने क्षेत्र में काम कर रही किसी ग़ैर सरकारी संस्था की भी मदद ले सकते हैं.
 सवाल - जवाब
 क्या फाइल नोटिंग का सार्वजनिक होना अधिकारियों को ईमानदार सलाह देने से रोकेगा?
नहीं, यह आशंका ग़लत है. इसके  उलट, हर अधिकारी को अब यह पता होगा कि जो कुछ भी वह लिखता है वह जन- समीक्षा का विषय हो सकता है. यह उस पर उत्तम जनहित में लिखने का दबाव बनाएगा. कुछ ईमानदार नौकरशाहों ने अलग से स्वीकार किया है कि आरटीआई उनके राजनीतिक व अन्य प्रभावों को दरकिनार करने में बहुत प्रभावी रहा है. अब अधिकारी सीधे तौर स्वीकार करते हैं कि यदि उन्होंने कुछ ग़लत किया तो उनका पर्दाफाश हो जाएगा. इसलिए, अधिकारियों ने इस बात पर जोर देना शुरू कर दिया है कि वरिष्ठ अधिकारी भी उन्हें लिखित में निर्देश दें.

क्या बहुत लंबी-चौड़ी सूचना मांगने वाले आवेदन को ख़ारिज किया जाना चाहिए?
यदि कोई आवेदक ऐसी जानकारी चाहता है जो एक लाख पृष्ठों की हो तो वह ऐसा तभी करेगा जब सचमुच उसे इसकी ज़रूरत होगी क्योंकि उसके  लिए दो लाख रुपयों का भुगतान करना होगा. यह अपने आप में ही हतोत्साहित करने वाला उपाय है. यदि अर्ज़ी इस आधार पर रद्द कर दी गयी, तो प्रार्थी इसे तोड़कर प्रत्येक अर्ज़ी में 100 पृष्ठ मांगते हुए 1000 अर्जियां बना लेगा, जिससे किसी का भी लाभ नहीं होगा. इसलिए, इस कारण अर्जियां रद्द नहीं होनी चाहिए कि लोग ऐसे मुद्दों से जुड़ी सूचना मांग रहे हैं जो सीधे सीधे उनसे जुड़ी हुई नहीं हैं. उन्हें सरकार के अन्य मामलों के बारे में प्रश्न पूछने की छूट नहीं दी जानी चाहिए, पूर्णतः ग़लत है. आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे ख़र्च हो रहा है और कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. भले ही वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति ऐसी कोई भी सूचना मांग सकता है जो तमिलनाडु से संबंधित हो.

सरकारी रेकॉर्ड्स सही रूप में व्यवस्थित नहीं हैं.
आरटीआई की वजह से सरकारी व्यवस्था पर अब रेकॉर्ड्स सही आकार और स्वरूप में रखने का दवाब बनेगा. अन्यथा, अधिकारी को आरटीआई क़ानून के तहत दंड भुगतना होगा.

 आपने सूचना पाने के लिए किसी सरकारी विभाग में आवेदन किया है, 30 दिन बीत जाने के बाद भी आपको सूचना नहीं मिली या मिली भी तो ग़लत और आधी-अधूरी अथवा भ्रामक. या फिर सूचना का अधिकार क़ानून की धारा 8 के प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर आपको सूचना देने से मना कर दिया गया. यह कहा गया कि फलां सूचना दिए जाने से किसी के विशेषाधिकार का हनन होता है या फलां सूचना तीसरे पक्ष से जुड़ी है इत्यादि. अब आप ऐसी स्थिति में क्या करेंगे? ज़ाहिर है, चुपचाप तो बैठा नहीं जा सकता. इसलिए यह ज़रूरी है कि आप सूचना का अधिकार क़ानून के तहत ऐसे मामलों में प्रथम अपील करें. जब आप आवेदन जमा करते हैं तो उसके 30 दिनों बाद, लेकिन 60 दिनों के अंदर लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ अधिकारी, जो सूचना क़ानून के तहत प्रथम अपीलीय अधिकारी होता है, के यहां अपील करें. यदि आप द्वारा अपील करने के बाद भी कोई सूचना या संतोषजनक सूचना नहीं मिलती है या आपकी प्रथम अपील पर कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप दूसरी अपील कर सकते हैं. दूसरी अपील के लिए आपको राज्य सूचना आयोग या केंद्रीय सूचना आयोग में जाना होगा. फिलहाल इस अंक में हम स़िर्फ प्रथम अपील के बारे में ही बात कर रहे हैं. हम प्रथम अपील का एक प्रारूप भी प्रकाशित कर रहे हैं. अगले अंक में हम आपकी सुविधा के लिए द्वितीय अपील का प्रारूप भी प्रकाशित करेंगे. प्रथम अपील के लिए आमतौर पर कोई फीस निर्धारित नहीं है. हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने अपने यहां प्रथम अपील के लिए भी शुल्क निर्धारित कर रखा है. प्रथम अपील के लिए कोई निश्चित प्रारूप (फॉर्म) नहीं होता है. आप चाहें तो एक सादे काग़ज़ पर भी लिखकर प्रथम अपील तैयार कर सकते हैं. हालांकि इस मामले में भी कुछ राज्य सरकारों ने प्रथम अपील के लिए एक ख़ास प्रारूप तैयार कर रखा है. प्रथम अपील आप डाक द्वारा या व्यक्तिगत रूप से संबंधित कार्यालय में जाकर जमा करा सकते हैं. प्रथम अपील के साथ आरटीआई आवेदन, लोक सूचना अधिकारी द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना (यदि उपलब्ध कराई गई है तो) एवं आरटीआई आवेदन के साथ दिए गए शुल्क की रसीद आदि की फोटोकॉपी लगाना न भूलें. इस क़ानून के प्रावधानों के अनुसार, यदि लोक सूचना अधिकारी आपके द्वारा मांगी गई सूचना 30 दिनों के भीतर उपलब्ध नहीं कराता है तो आप प्रथम अपील में सारी सूचनाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराने के लिए भी कह सकते हैं. इस क़ानून में यह एक बहुत महत्वपूर्ण प्रावधान है. भले ही सूचना हज़ार पन्नों की क्यों न हो. हम उम्मीद करते हैं कि आप इस अंक में प्रकाशित प्रथम अपील के प्रारूप का ज़रूर इस्तेमाल करेंगे और अन्य लोगों को भी इस संबंध में जागरूक करेंगे.
 आरटीआई अधिनियम सभी नागरिकों को लोक प्राधिकरण द्वारा धारित सूचना की अभिगम्यता का अधिकार प्रदान करता है. यदि आपको किसी सूचना की अभिगम्यता प्रदान करने से मना किया गया हो तो आप केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के समक्ष अपील/ शिकायत दायर कर सकते हैं.
दूसरी अपील कब दर्ज करें
19 (1) कोई व्यक्ति, जिसे उपधारा (1) अथवा धारा 7 की उपधारा (3) के खंड (क) के तहत निर्दिष्ट समय के अंदर निर्णय प्राप्त नहीं होता है अथवा वह केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी के निर्णय से पीड़ित है, जैसा भी मामला हो, वह उक्त अवधि समाप्त होने के 30 दिनों के अंदर अथवा निर्णय प्राप्त होने के 30 दिनों के अंदर उस अधिकारी के पास एक अपील दर्ज करा सकता है, जो प्रत्येक लोक प्राधिकरण में केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ स्तर का है, जैसा भी मामला हो:
1. बशर्ते उक्त अधिकारी 30 दिन की अवधि समाप्त होने के बाद अपील स्वीकार कर लेता है. यदि वह इसके प्रति संतुष्ट है कि अपीलकर्ता को समय पर अपील करने से रोकने का पर्याप्त कारण है.
19 (2): जब केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी, जैसा भी मामला हो, द्वारा धारा 11 के तहत तीसरे पक्ष की सूचना का प्रकटन किया जाता है, तब संबंधित तीसरा पक्ष आदेश की तिथि के 30 दिनों के अंदर अपील कर सकता है.
19 (3) उपधारा 1 के तहत निर्णय के विरुद्ध एक दूसरी अपील तिथि के 90 दिनों के अंदर की जाएगी, जब निर्णय किया गया है अथवा इसे केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग में वास्तविक रूप से प्राप्त किया गया है:
1. बशर्ते केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, 90 दिन की अवधि समाप्त होने के बाद अपील स्वीकार कर सकता है, यदि वह इसके प्रति संतुष्ट हो कि अपीलकर्ता को समय पर अपील न कर पाने के लिए पर्याप्त कारण हैं.
19 (4): यदि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी का निर्णय, जैसा कि मामला हो, दिया जाता है और इसके विरुद्ध तीसरे पक्ष की सूचना से संबंधित एक अपील की जाती है तो केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, उस तीसरे पक्ष को सुनने का एक पर्याप्त अवसर देगा.
19 (7): केद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग का निर्णय, जैसा भी मामला हो, मानने के लिए बाध्य होगा.
19 (8): अपने निर्णय में केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, को निम्नलिखित का अधिकार होगा.
(क) लोक प्राधिकरण द्वारा वे क़दम उठाए जाएं, जो इस अधिनियम के प्रावधानों के साथ पालन को सुनिश्चित करें, जिसमें शामिल हैं
  • सूचना तक पहुंच प्रदान करने द्वारा, एक विशेष रूप में, यदि ऐसा अनुरोध किया गया है;
  • केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति द्वारा, जैसा भी मामला हो;
  • सूचना की कुछ श्रेणियों या किसी विशिष्ट सूचना के प्रकाशन द्वारा;
  • अभिलेखों के रखरखाव, प्रबंधन और विनाश के संदर्भ में प्रथाओं में अनिवार्य बदलावों द्वारा;
  • अपने अधिकारियों को सूचना के अधिकार पर प्रशिक्षण के प्रावधान बढ़ाकर;
  • धारा 4 की उपधारा (1) के खंड (ख) का पालन करते हुए वार्षिक प्रतिवेदन प्रदान करना;
(ख) लोक प्राधिकरण द्वारा किसी क्षति या अन्य उठाई गई हानि के लिए शिकायतकर्ता को मुआवज़ा देना;
(ग) अधिनियम के तहत प्रदान की गई शक्तियों को अधिरोपित करना;
(घ) आवेदन अस्वीकार करना.
19 (9): केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, अपील के अधिकार सहित अपने निर्णय की सूचना शिकायतकर्ता और लोक प्राधिकरण को देगा.
19 (10): केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, उक्त प्रक्रिया में निर्धारित विधि द्वारा अपील का निर्णय देगा.
 क्या लोक सूचना अधिकारी ने आपको जवाब नहीं दिया या दिया भी तो ग़लत और आधा-अधूरा? क्या प्रथम अपीलीय अधिकारी ने भी आपकी बात नहीं सुनी? ज़ाहिर है, अब आप प्रथम अपील या शिकायत करने की सोच रहे होंगे. अगर मामला केंद्रीय विभाग से जुड़ा हो तो इसके लिए आपको केंद्रीय सूचना आयोग आना पड़ेगा. आप अगर बिहार, उत्तर प्रदेश या देश के अन्य किसी दूरदराज के इलाक़े के रहने वाले हैं तो बार-बार दिल्ली आना आपके लिए मुश्किल भरा काम हो सकता है. लेकिन अब आपको द्वितीय अपील या शिकायत दर्ज कराने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग के दफ्तर के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. अब आप सीधे सीआईसी में ऑनलाइन द्वितीय अपील या शिकायत कर सकते हैं. सीआईसी में शिकायत या द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए हीं www.rti.india.gov.in  में दिया गया फार्म भरकर जमा करना है. क्लिक करते ही आपकी शिकायत या अपील दर्ज हो जाती है.
दरअसल यह व्यवस्था भारत सरकार की ई-गवर्नेंस योजना का एक हिस्सा है. अब वेबसाइट के माध्यम से केंद्रीय सूचना आयोग में शिकायत या द्वितीय अपील भी दर्ज की जा सकती है. इतना ही नहीं, आपकी अपील या शिकायत की वर्तमान स्थिति क्या है, उस पर क्या कार्रवाई की गई है, यह जानकारी भी आप घर बैठे ही पा सकते हैं. सीआईसी में द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए वेबसाइट में प्रोविजनल संख्या पूछी जाती है. वेबसाइट पर जाकर आप सीआईसी के निर्णय, वाद सूची, अपनी अपील या शिकायत की स्थिति भी जांच सकते हैं. इस पहल को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है. सूचना का अधिकार क़ानून लागू होने के बाद से लगातार यह मांग की जा रही थी कि आरटीआई आवेदन एवं अपील ऑनलाइन करने की व्यवस्था की जाए, जिससे सूचना का अधिकार आसानी से लोगों तक अपनी पहुंच बना सके और आवेदक को सूचना प्राप्त करने में ज़्यादा द़िक्क़त न उठानी पड़े.
आरटीआई ने दिलाई आज़ादी
https://images-blogger-opensocial.googleusercontent.com/gadgets/proxy?url=http%3A%2F%2Fwww.chauthiduniya.com%2Fwp-content%2Fuploads%2F2010%2F07%2Fpage10.-RTI-jpg-250x150.jpg&container=blogger&gadget=a&rewriteMime=image%2F*मुंगेर (बिहार) से अधिवक्ता एवं आरटीआई कार्यकर्ता ओम प्रकाश पोद्दार ने हमें सूचित किया है कि सूचना का अधिकार क़ानून की बदौलत बिहार में एक ऐसा काम हुआ है, जिसने सूचना क़ानून की ताक़त से आम आदमी को तो परिचित कराया ही, साथ में राज्य की अ़फसरशाही को भी सबक सिखाने का काम किया. दरअसल राज्य की अलग-अलग जेलों में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे 106 क़ैदियों की सज़ा पूरी तो हो चुकी थी, फिर भी उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा था. यह जानकारी सूचना क़ानून के तहत ही निकल कर आई थी. इसके बाद पोद्दार ने इस मामले में एक लोकहित याचिका दायर की. मार्च 2010 में हाईकोर्ट के आदेश पर ससमय परिहार परिषद की बैठक शुरू हुई, जिसमें उन क़ैदियों की मुक्ति का मार्ग खुला, जो अपनी सज़ा पूरी करने के बावजूद रिहा नहीं हो पा रहे थे.
 दरअसल, अपील और शिक़ायत में एक बुनियादी फर्क़ है. कई बार ऐसा होता है कि आपने अपने आरटीआई आवेदन में जो सवाल पूछा है, उसका जवाब आपको ग़लत दे दिया जाता है और आपको पूर्ण विश्वास है कि जो जवाब दिया गया है वह ग़लत, अपूर्ण या भ्रामक है. इसके अलावा, आप किसी सरकारी महकमे में आरटीआई आवेदन जमा करने जाते हैं और पता चलता है कि वहां तो लोक सूचना अधिकारी ही नियुक्त नहीं किया गया है. या फिर आपसे ग़लत फीस वसूली जाती है. तो, ऐसे मामलों में हम सीधे राज्य सूचना आयोग या केंद्रीय सूचना आयोग में शिक़ायत कर सकते है. ऐसे मामलों में अपील की जगह सीधे शिक़ायत करना ही समाधान है. आरटीआई अधिनियम सभी नागरिकों को एक लोक प्राधिकारी के पास उपलब्ध जानकारी तक पहुंच का अधिकार प्रदान करता है. यदि आपको कोई जानकारी देने से मना किया गया है तो आप केंद्रीय सूचना आयोग/राज्य सूचना आयोग, जैसा मामला हो, में अपनी शिक़ायत दर्ज करा सकते हैं.
सूचना क़ानून की धारा 18 (1) के तहत यह केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग का कर्तव्य है, जैसा भी मामला हो, कि वे एक व्यक्ति से शिक़ायत स्वीकार करें और पूछताछ करें. कई बार लोग केंद्रीय सूचना लोक अधिकारी या राज्य सूचना लोक अधिकारी के पास अपना अनुरोध जमा करने में सफल नहीं होते, जैसा भी मामला हो. इसका कारण कुछ भी हो सकता है, उक्त अधिकारी या केंद्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी या राज्य सहायक लोक सूचना अधिकारी, इस अधिनियम के तहत नियुक्त न किया गया हो, जैसा भी मामला हो, ने इस अधिनियम के तहत अग्रेषित करने के  लिए कोई सूचना या अपील के लिए उनके आवेदन को स्वीकार करने से मना कर दिया हो, जिसे वह केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या धारा 19 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट राज्य लोक सूचना अधिकारी के पास न भेजें या केंद्रीय सूचना आयोग अथवा राज्य सूचना आयोग में अग्रेषित न करें, जैसा भी मामला हो.
  • जिसे इस अधिनियम के तहत कोई जानकारी तक पहुंच देने से मना कर दिया गया हो. ऐसा व्यक्ति जिसे इस अधिनियम के तहत निर्दिष्ट समय सीमा के अंदर सूचना के लिए अनुरोध या सूचना तक पहुंच के अनुरोध का उत्तर नहीं दिया गया हो.
  • जिसे शुल्क भुगतान करने की आवश्यकता हो, जिसे वह अनुपयुक्त मानता/मानती है.
  • जिसे विश्वास है कि उसे इस अधिनियम के तहत अपूर्ण, भ्रामक या झूठी जानकारी दी गई है.
  • इस अधिनियम के तहत अभिलेख तक पहुंच प्राप्त करने या अनुरोध करने से संबंधित किसी मामले के विषय में.
 द्वितीय अपील तब करते हैं, जब प्रथम अपील के बाद भी आपको संतोषजनक सूचना नहीं मिलती है. राज्य सरकार से जुड़े मामलों में यह अपील राज्य सूचना आयोग और केंद्र सरकार से जुड़े मामलों में यह अपील केंद्रीय सूचना आयोग में की जाती है. हमने आपकी सुविधा के लिए द्वितीय अपील का एक प्रारूप भी प्रकाशित किया था. हमें उम्मीद है कि आपने इसका इस्तेमाल ज़रूर किया होगा. इससे निश्चय ही फायदा होगा. इस अंक में हम सूचना का अधिकार क़ानून 2005 की धारा 18 के बारे में बात कर रहे हैं. धारा 18 के तहत शिक़ायत दर्ज कराने की व्यवस्था है. एक आवेदक के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि किन-किन परिस्थितियों में शिक़ायत दर्ज कराई जा सकती है. लोक सूचना अधिकारी यदि आवेदन लेने से इंकार करता है अथवा परेशान करता है तो इसकी शिक़ायत सीधे आयोग में की जा सकती है. सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, अपूर्ण सूचना उपलब्ध कराने, भ्रामक या ग़लत सूचना देने के ख़िला़फ भी शिक़ायत दर्ज कराई जा सकती है. सूचना के लिए अधिक फीस मांगने के ख़िला़फ भी आवेदक आयोग में सीधे शिक़ायत दर्ज करा सकता है. उपरोक्त में से कोई भी स्थिति सामने आने पर आवेदक को प्रथम अपील करने की ज़रूरत नहीं होती. आवेदक चाहे तो सीधे सूचना आयोग में अपनी शिक़ायत दर्ज करा सकता है. शिक़ायत का एक प्रारूप भी हम इसी अंक में प्रकाशित कर रहे हैं.
 एक लोकतांत्रिक देश का नागरिक होने के फायदे तो हैं, लेकिन इस व्यवस्था की अपनी कुछ समस्याएं भी हैं. बावजूद इसके घबराने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि समस्या है तो समाधान भी है. पिछले कुछ दिनों में हमें अपने पाठकों के ढेर सारे पत्र मिले हैं, जो इस बात के सबूत हैं कि हमारे पाठक न स़िर्फ आरटीआई क़ानून का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं, बल्कि वे अपनी समस्या का समाधान भी इस क़ानून के ज़रिए चाहते हैं. इसके अलावा आरटीआई क़ानून से जुड़े अनुभव भी उन्होंने हमारे साथ बांटे हैं. इस अंक में हम उन्हीं पत्रों को प्रकाशित कर रहे हैं. इसके पीछे हमारा मक़सद अपने सभी पाठकों को विभिन्न तरह की समस्याओं और उनके समाधान से रूबरू कराना है. उम्मीद है, इस अंक में प्रकाशित पत्रों को पढ़कर हमारे पाठकगण लाभांवित होंगे.
ग्रामीण बैंक 25 हज़ार रुपये मांग रहा है
मैंने आरटीआई के तहत उत्तर बिहार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक मुज़फ़़्फरपुर से केसीसी से संबंधित सूचनाएं मांगी थीं. 30 दिनों के भीतर जवाब न मिलने पर प्रथम अपील की. फिर भी कोई सूचना नहीं मिली. बाद में एक दिन बैंक की तऱफ से एक पत्र मिला, जिसमें सूचना उपलब्ध कराने के लिए 25 हज़ार रुपये की मांग की गई. ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए.
- उमाशंकर सिंह, औराई, मुज़फ्फरपुर.
आरटीआई क़ानून में ऐसे लोक सूचना अधिकारियों को रास्ते पर लाने के लिए कई उपाय हैं. जैसे जब कभी आपको किसी फाइल से कोई सूचना मांगनी हो तो अपने आरटीआई आवेदन में एक सवाल फाइल निरीक्षण को लेकर भी जोड़ें. आरटीआई एक्ट की धारा 2 (जे)(1) के तहत आप इसकी मांग कर सकते हैं. आप अपने आवेदन में यह लाइन जोड़ें, महोदय, मैं सूचना का अधिकार क़ानून 2005 की धारा 2 (जे) (1) के तहत अमुक फाइल…………….. का निरीक्षण करना चाहता हूं. इस संबंध में आप मुझे एक तय समय, जगह और तिथि के बारे में सूचित करें, ताकि मैं आकर उक्त फाइल का निरीक्षण कर सकूं. साथ ही इस बात की भी व्य्वस्था करें कि मुझे उक्त फाइल का जो भी हिस्सा चाहिए, उसकी फोटोकॉपी उपलब्ध कराई जा सके. इसके लिए नियत शुल्क का भुगतान मैं कर दूंगा. इसके अलावा अगर लोक सूचना अधिकारी तीस दिनों के भीतर सूचना नहीं देता तो बाद में वह सूचना मुफ्त देनी पड़ती है. आप राज्य सूचना आयोग में द्वितीय अपील/शिक़ायत भी कर सकते हैं या फिर से एक आवेदन फाइल निरीक्षण के लिए भी दे सकते हैं.
पंजीयन संख्या नहीं मिली
मेरे भतीजे इंद्रजीत कुमार के दसवीं कक्षा के अंक पत्र पर पंजीयन संख्या का उल्लेख नहीं है. इस संबंध में मैंने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति को आरटीआई के तहत एक आवेदन देकर पूछा. काफी मशक्कत के बाद मुझे एक संक्षिप्त और अधूरी सूचना मिली कि जांच का काम चल रहा है. फिलहाल यह मामला राज्य सूचना आयोग में है. ऐसी स्थिति में मेरे भतीजे का नामांकन कहीं नहीं हो पाया.
- लालदेव कामत, मधुबनी.
जब मामला आयोग में हो तो सिवाय इंतज़ार के क्या किया जा सकता है, लेकिन अगर आपके भतीजे ने पूर्व में अपने पंजीयन संख्या के संबंध में कोई साधारण आवेदन समिति में जमा किया है और उसकी एक प्रति उसके पास है तो एक बार फिर उसी आवेदन के संबंध में आपका भतीजा अपने नाम से एक नया आरटीआई आवेदन परीक्षा समिति के पास भेज कर स़िर्फ यह पूछे कि उसके आवेदन पर अब तक क्या कार्रवाई हुई है और ऐसे मामलों के निपटारे के लिए समिति ने क्या समय सीमा तय की है. अगर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है तो इसके लिए कौन-कौन से अधिकारी ज़िम्मेदार हैं, उनके नाम और पदनाम बताएं.
कोयला खदानों में कुछ गड़बड़ है
ग़ौरतलब है कि एसईसीएल कमांड एरिया में अब तक 51 कोयला ब्लॉक कोयला मंत्रालय द्वारा आवंटित किए गए हैं. मैंने सूचना के अधिकार के तहत एसईसीएल, सीएमडी मुख्यालय, बिलासपुर से 51 कोल ब्लॉकों में हो रहे कोयला उत्पादन के बारे में जानकारी मांगी थी. एसईसीएल के अधिकारियों ने जो जवाब दिए हैं, वे चौंकाने वाले हैं. एसईसीएल का कहना है कि सीएमडी के मुख्यालय में उक्त सभी 51 कोल ब्लॉकों से संबंधित कोयला उत्पादन की जानकारी उपलब्ध नहीं है. इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि केंद्रीय कोयला मंत्रालय द्वारा एसईसीएल कमांड एरिया में आवंटित 51 कोल ब्लॉकों में कोयले का घोटाला हो रहा है.
- एस एल सलूजा, बिलासपुर.
घोटाले की बात साबित करने के लिए इस मामले में आरटीआई के ज़रिए और तहक़ीक़ात की जा सकती है. मंत्रालय से उक्त ब्लॉकों में कोयला उत्पादन की मात्रा, आपूर्ति एवं ग्राहक इत्यादि के संबंध में सवाल पूछे जा सकते हैं.
विज्ञापन का भुगतान कैसे होगा?
मैं एक स्थानीय समाचारपत्र में बतौर संवाददाता काम कर रहा हूं. हमारे समाचारपत्र में छपे विज्ञापनों का बकाया कई नगर पंचायतों एवं नगरपालिकाओं पर है, जो लंबे समय से नहीं मिला है. क्या आरटीआई के तहत उक्त बकाए का भुगतान हो सकता है.
- शिबली रामपुरी, सहारनपुर.
विज्ञापन के संबंध में आपके समाचार पत्र और नगरपालिकाओं एवं पंचायतों के बीच काग़ज़ी अनुबंध यदि हो तो आप भुगतान के लिए पंचायत और नगरपालिकाओं के अधिकारियों को आवेदन दे सकते हैं. आवेदन देने पर भी यदि भुगतान नहीं होता है तो उसी आवेदन की एक कॉपी के साथ आप एक आरटीआई आवेदन उक्त जगहों पर भेज सकते हैं. अपने आरटीआई आवेदन में आप उक्त संस्थाओं द्वारा विज्ञापन भुगतान के संबंध में निर्धारित नियम-क़ानून के बारे में सवाल पूछ सकते हैं. साथ ही भुगतान न करने के लिए ज़िम्मेदार अधिकारी के नाम और पदनाम के बारे में जानकारी मांग सकते हैं. भुगतान के लिए पूर्व में दिए गए साधारण आवेदन पर अब तक की गई कार्रवाई के बारे में भी सवाल पूछ सकते हैं.
 अभी तक हमने आपको तीसरे पक्ष और न्यायालय की अवमानना के बारे में बताया कि कैसे इन शब्दों का ग़लत इस्तेमाल करके लोक सूचना अधिकारी सूचना देने से मना कर देते हैं. इस अंक में हम आपको ऐसे ही एक और शब्द से परिचित करा रहे हैं. इस बार हम बात करेंगे संसदीय विशेषाधिकार के बारे में. कैसे और कब फंसता है संसदीय विशेषाधिकार का पेंच. सबसे पहले एक उदाहरण से इस मामले को समझने की कोशिश करते हैं. अमेरिका से एटमी डील के  दौरान यूपीए सरकार को जब सदन में विश्वास मत हासिल करना था, उसके कुछ घंटे पहले सदन में भारत के संसदीय इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना घटित हुई. भाजपा के तीन सांसदों ने सदन में नोटों की गड्डियां लहराते हुए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पर यह आरोप लगाया कि यह नोट उन्हें सरकार के  पक्ष में विश्वास मत के दौरान वोट देने के लिए घूस के  रूप में मिले हैं, जिसे एक मीडिया चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन के दौरान अपने कैमरे में कैद कर लिया था और उसे लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी को सौंप दिया था.
राहुल विभूषण ने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड और तीन सांसदों के बीच हुए पत्र व्यवहार की प्रतिलिपि मांगी थी. दरअसल एक पेट्रोल पंप को अनुबंध की शर्तों का उल्लघंन करने के कारण बंद कर दिया गया था. इस पेट्रोल पंप को दोबारा खुलवाने के लिए तीन सांसदों ने पेट्रोलियम मंत्री को पत्र लिखा था.
बाद में कुछ ग़ैर सरकारी संगठनों और लोगों ने जब सूचना के अधिकार के  तहत आवेदन करके वीडियो टेप सार्वजनिक करने की मांग की तो लोकसभा ने उन टेप को सार्वजनिक करने से मना कर दिया. लोकसभा ने बताया कि वीडियो टेप अभी संसदीय समिति के पास है और जांच की प्रक्रिया चल रही है. जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती तब तक इस सूचना के सार्वजनिक करने से धारा 8 (1) (सी) का उल्लंघन होता है. इस धारा में बताया गया है कि ऐसी सूचना जिसके सार्वजनिक किए जाने से संसद या किसी राज्य के विधानमंडल के विशेषाधिकार का हनन होता है, उसे सूचना के अधिकार के तहत दिए जाने से रोका जा सकता है.
ऐसा ही एक मामला और है, जिसमें वर्तमान केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने महाराष्ट्र के सामान्य प्रशासनिक विभाग से मुख्यमंत्री राहत कोष में मुंबई ट्रेन धमाकों के बाद प्राप्त अनुदानों के खर्चों का ब्यौरा मांगा था. उन्हें यह कह कर सूचना देने से मना कर दिया गया कि मुख्यमंत्री राहत कोष एक निजी ट्रस्ट है और सूचना क़ानून के दायरे में नहीं आता, जबकि शैलेश का मानना था कि राहत कोष एक पब्लिक बॉडी है और आयकर छूट का लाभ उठाती है. मुख्यमंत्री जनता का सेवक होता है, इसलिए इस सूचना के सार्वजनिक होने से विधानमंडल के विशेषाधिकारों का हनन नहीं होता है. एक मासिक पत्रिका से जु़डे रमेश तिवारी ने उत्तर प्रदेश के स्पीकर और स्टेट असेंबली के साचिव के पास एक आवेदन किया था. आवेदन के  माध्यम से यह जानना चाहा था कि क्या कोई लेजिसलेटर अपने आप से कोई सरकारी ठेका ले सकता है और यदि ऐसा ठेका लिया गया है तो क्या ऐसे सदस्य की असेंबली से सदस्यता रद्द की जा सकती है?
असेंबली से रमेश को जब कोई जवाब नहीं मिला तो वह मामले को उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त के समक्ष ले गए. आयोग के तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त एम ए ख़ान ने स्पीकर और सचिव को सूचना के अधिकार क़ानून के तहत नोटिस जारी कर दिया. नोटिस पाते ही सबसे पहले तो रमेश का
आवेदन खारिज़ कर दिया गया और उसके बाद असेंबली में एक रेजोल्यूशन पास किया गया, जिसके माध्यम से सूचना आयोग को चेतावनी दी गई कि आयोग का इस मामले से कोई लेना देना नहीं है और इस तरह की सूचना मांगे जाने से और आयोग द्वारा नोटिस भेजे जाने से विधानमंडल के विशेषाधिकार का हनन होता है. आयोग को आगे से ऐसे मामलों में सावधान रहने की चेतावनी दी गई.
राहुल विभूषण ने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड और तीन सांसदों के बीच हुए पत्र व्यवहार की प्रतिलिपि मांगी थी. दरअसल एक पेट्रोल पंप को अनुबंध की शर्तों का उल्लघंन करने के कारण बंद कर दिया गया था. इस पेट्रोल पंप को दोबारा खुलवाने के लिए तीन सांसदों ने पेट्रोलियम मंत्री को पत्र लिखा था. राहुल ने इस पत्र के जवाब की प्रतिलिपि मांगी थी, जिसे यह कहकर देने से मना कर दिया गया कि इसे दिए जाने से संसद के विशेषाधिकारों को हनन होता है. आयोग में सुनवाई के दौरान सूचना आयुक्त ने माना कि सांसद द्वारा लिखे गए पत्र का संसद या संसदीय कार्रवाई से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है और इस सूचना के सार्वजनिक किए जाने से संसद के किसी विशेषाधिकार का कोई हनन नहीं होता है. आयुक्त ने मांगी गई सूचना को 15 दिनों के भीतर आवेदक को सौंपे जाने का आदेश दिया. कुल मिला कर देखें तो ज़्यादातर मामलों में लोक सूचना अधिकारी संसदीय विशेषाधिकार की आ़ड में सूचना देने से मना कर देते हैं, जबकि वास्तव में वह मामला संसदीय विशेषाधिकार से जु़डा नहीं होता है.
 हम उम्मीद करते हैं कि आगे से जब कभी भी आपको लोक सूचना अधिकारी की तऱफ से ऐसा जवाब मिले कि तीसरे पक्ष से जुड़े होने के कारण आपको अमुक सूचना नहीं दी सकती है, तब आप चुपचाप नहीं बैठ जाएंगे, बल्कि लोक सूचना अधिकारी को पत्र लिखकर या व्यक्तिगत रूप से मिलकर यह समझाने की कोशिश करेंगे कि कैसे आपके द्वारा मांगी गई सूचना को सार्वजनिक करने से जनसाधारण को लाभ पहुंचेगा. और, अगर फिर भी लोक सूचना अधिकारी आपकी बातों से सहमत नहीं होता है, तब आप आपने तर्कों के साथ प्रथम या द्वितीय अपील ज़रूर करेंगे. इसके आगे इस अंक में हम आपको ऐसी सूचना के प्रकटीकरण से संबंधित बातें बता रहे हैं, जिसका संबंध न्यायालय से है या जिसके बारे में कहा जाता है कि अमुक सूचना को सार्वजनिक करने से न्यायालय की अवमानना होती है. हम आपको बता दें कि लोक सूचना अधिकारी न्यायालय की अवमानना की बात कहकर भी कई बार सूचना देने से मना कर देते हैं. हो सकता है कि कई बार यह तर्क सही भी हो, लेकिन ज़्यादातर मामलों में देखा गया है कि लोक सूचना अधिकारी इस तर्क का ग़लत इस्तेमाल करते हैं. इसलिए यह ज़रूरी है कि आवेदक को न्यायालय की अवमानना की सही परिभाषा के बारे में जानकारी हो. इस अंक में हम आपको उदाहरण सहित यह बता रहे हैं कि न्यायालय की अवमानना कब और कैसे होती है और किन-किन परिस्थितियों में आपको सूचना देने से मना किया जा सकता है और किन-किन परिस्थितियों में नहीं. हमें उम्मीद है कि आप जमकर आरटीआई क़ानून का इस्तेमाल कर रहे होंगे और दूसरों को भी इसके लिए प्रोत्साहित करते होंगे. अगर कोई समस्या या परेशानी हो तो हमें ज़रूर बताएं, हम हर क़दम पर आपको मदद देने के लिए तैयार हैं.
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(बी) में ऐसी सूचनाएं, जिनके प्रकाशन पर किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा अभिव्यक्त रूप से प्रतिबंध लगाया गया हो या जिसके प्रकटन से न्यायालय की अवमानना होती हो, उसके  सार्वजनिक किए जाने पर रोक लगाई गई है. अगर कोई मामला किसी कोर्ट में निर्णय के लिए विचाराधीन है तो उसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि उससे संबंधित कोई सूचना नहीं मांगी जा सकती. विचाराधीन मामलों के संबंध में कोई सूचना सार्वजनिक किए जाने से कोर्ट की अवमानना हो, यह ज़रूरी नहीं है. हां, कोई विशेष सूचना, जिसे कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर सार्वजनिक किए जाने पर रोक लगा दी हो, अगर उसे सार्वजनिक किए जाने की बात होगी तो कोर्ट की अवमानना ज़रूर होगी. गोधरा जांच के  दौरान उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में रेल मंत्रालय को विशेष तौर पर निर्देश दिए थे कि वह गोधरा नरसंहार की जांच रिपोर्ट संसद के समक्ष प्रस्तुत न करे. न्यायालय ने रिपोर्ट के सार्वजनिक किए जाने पर रोक लगा दी. यह सूचना दिए जाने से कोर्ट की अवमानना भी हो सकती थी और धारा 8 (1)(बी) का उल्लंघन भी. ऐसे मुद्दों पर अधिकारियों को केवल वही सूचनाएं देने से मना करना चाहिए, जिन्हें न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर सार्वजनिक किए जाने से निषिद्ध कर रखा हो. कुछ मामलों में देखने में आया है कि सरकारी अधिकारी इस धारा का इस्तेमाल सूचना न देने के बहाने के रूप में धड़ल्ले से कर रहे हैं. अफरोज ने एम्स और दिल्ली पुलिस से बाटला हाउस मुठभेड़ के दौरान मारे गए तथाकथित आतंकियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट, एफआईआर की कॉपी एवं दिल्ली में हुए सीरियल धमाकों की तफ्तीश के दौरान गिरफ़्तारी आदि की जानकारी मांगी थी. जवाब में बताया गया कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है और सूचना नहीं दी जा सकती, जबकि कोर्ट द्वारा सूचना सार्वजनिक न किए जाने के संबंध में दिया गया ऐसा कोई भी आदेश प्रकाश में नहीं आया.
ऐसे में सूचना आयुक्तों की ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है, जिसे उन्होंने बख़ूबी निभाया है.
क्या कहता है क़ानून
सूचना के अधिकार क़ानून में कोर्ट की अवमानना को परिभाषित नहीं किया गया है. इसे समझने के लिए न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 का सहारा लिया जा सकता है. अधिनियम की धारा 2(ए) (बी) और (सी) में बताया गया है कि-
ए- दीवानी या फौजदारी दोनों तरह से कोर्ट की अवमानना हो सकती है.
बी- यदि किसी कोर्ट के निर्णय, डिक्री, आदेश, निर्देश, याचिका या कोर्ट की किसी प्रक्रिया का जानबूझ कर उल्लंघन किया जाए या कोर्ट द्वारा दिए गए किसी वचन को जानबूझ कर भंग किया जाए तो यह कोर्ट की दीवानी अवमानना होगी.
सी-किसी प्रकाशन, चाहे वह मौखिक, लिखित, सांकेतिक या किसी अभिवेदन या अन्य किसी माध्यम या कृत्य द्वारा
1. बदनाम या बदनाम करने की कोशिश या अभिकरण या कोर्ट को नीचा दिखाने की कोशिश की जाए.
2. किसी न्यायिक प्रक्रिया में पक्षपात या हस्तक्षेप.
3. न्याय व्यवस्था में किसी प्रकार से हस्तक्षेप या उसे बाधित करना या बाधित करने की कोशिश करना न्यायालय की अवमानना हो सकती है.
 सूचना का अधिकार क़ानून के तहत जब आप कोई सूचना मांगते हैं तो कई बार आपसे सूचना के बदले पैसा मांगा जाता है. आपसे कहा जाता है कि अमुक सूचना इतने पन्नों की है और प्रति पेज की फोटोकॉपी शुल्क के हिसाब से अमुक राशि जमा कराएं. कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिसमें लोक सूचना अधिकारी ने आवेदक से सूचना के बदले 70 लाख रुपये तक जमा कराने को कहा है. कई बार तो यह भी कहा जाता है कि अमुक सूचना काफी बड़ी है और इसे एकत्र करने के लिए एक या दो कर्मचारी को एक सप्ताह तक काम करना पड़ेगा, इसलिए उक्त कर्मचारी के एक सप्ताह का वेतन आपको देना होगा. ज़ाहिर है, सूचना न देने के लिए सरकारी बाबू इस तरह का हथकंडा अपनाते हैं. ऐसी हालत में यह ज़रूरी है कि आरटीआई आवेदक को सूचना शुल्क से संबंधित क़ानून के बारे में सही और पूरी जानकारी होनी चाहिए ताकि कोई लोक सूचना अधिकारी आपको बेवजह परेशान न कर सके. इस अंक में हम आपको आरटीआई फीस और सूचना के बदले दिए जाने वाले शुल्क के बारे में बता रहे हैं. यह सही बात है कि सूचना कानून की धारा 7 में सूचना के एवज़ में फीस की व्यवस्था बताई गई है, लेकिन धारा 7 की ही उप धारा 1 में लिखा गया है कि यह फीस सरकार द्वारा निर्धारित की जाएगी. इस व्यवस्था के  तहत सरकारों को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपने विभिन्न विभागों में सूचना के  अधिकार के  तहत दिया जाने वाला शुल्क आदि तय करेंगी. केंन्द्र और राज्य सरकारों ने इस अधिकार के तहत अपने-अपने यहां फीस नियमावली बनाई है और इसमें स्पष्ट किया गया है कि आवेदन करने से लेकर फोटोकॉपी आदि के  लिए कितनी-कितनी फीस ली जाएगी. इसके आगे धारा 7 की उपधारा 3 में लोक सूचना अधिकारी की ज़िम्मेदारी बताई गई है कि वह सरकार द्वारा तय की गई फीस के आधार पर गणना करते हुए आवेदक को बताएगा कि उसे सूचना लेने के लिए कितनी फीस देनी होगी. उपधारा 3 में लिखा गया है कि यह फीस वही होगी जो उपधारा 1 में सरकार द्वारा तय की गई होगी. देश के  सभी राज्यों में और केंद्र सरकारों ने फीस नियमावली बनाई है और इसमें आवेदन के लिए कहीं 10 रुपये का शुल्क रखा गया है तो कहीं 50 रुपये. इसी तरह दस्तावेज़ों की फोटोकॉपी लेने के लिए भी 2 रुपये से 5 रुपए तक की फीस अलग-अलग राज्यों में मिलती है. दस्तावेज़ों के निरीक्षण, काम के निरीक्षण, सीडी, फ्लॉपी पर सूचना लेने के लिए फीस भी इन नियमावालियों में बताई गई है. धारा 7 की उप धारा 3 कहती है कि लोक सूचना अधिकारी यह गणना करेगा कि आवेदक ने जो सूचना मांगी है वह कितने पृष्ठों में है, या कितनी सीडी, फ्लॉपी आदि में है. इसके बाद लोक सूचना अधिकारी सरकार द्वारा बनाई नियमावली में बताई गई दर से यह गणना करेगा कि आवेदक को सूचना लेने के  लिए कुल कितनी राशि जमा करानी होगी. इसके लिए किसी लोक सूचना अधिकारी को यह अधिकार कतई नहीं दिया गया है कि वह मनमाने तरीके से फीस की गणना करे और आवेदक को मोटी रकम जमा कराने के लिए दवाब में डाले. ऐसे में जो भी लोक सूचना अधिकारी मनमाने तरीक़े से अपनी सरकार द्वारा तय फीस से कोई अलग फीस आवेदक से मांगते हैं, वह ग़ैरक़ानूनी है. इसी के साथ एक आवेदक को यह भी पता होना चाहिए कि सूचना क़ानून के प्रावधानों के मुताबिक़ अगर लोक सूचना अधिकारी मांगी गई सूचना तय समय समय के अंदर (30 दिन या जो भी अन्य समय सीमा हो) उपलब्ध नहीं कराता है तो आवेदक से सूचना देने के लिए कोई शुल्क नहीं मांग सकता. इसके आवेदक को जब भी सूचना दी जाएगी वह बिना कोई शुल्क लिए दी जाएगी.
हमें यह हमेशा याद रखना होगा कि लोक सूचना अधिकारी या कोई भी अन्य सरकारी कर्मचारी आम आदमी के  टैक्स से वेतन लेने वाला व्यक्ति है. उसे यह वेतन दिया ही इसलिए जाता है कि वह आम आदमी के लिए बनाए गए विभिन्न क़ानूनों का पालन करते हुए कार्य करे. ऐसे में किसी एक क़ानून के  पालन के  लिए उसका वेतन किसी व्यक्ति विशेष से मांगना व्यवस्था की आत्मा के  ही खिला़फ है. हमें उम्मीद है कि आप सभी पाठकों के लिए यह जानकारी काफी मददगार साबित होगी. और, आपलोग जम कर आरटीआई क़ानून का इस्तेमाल करते रहेंगे.
 कई बार ऐसी ख़बरें आती रही हैं कि अमुक आदमी को सूचना क़ानून का इस्तेमाल करने पर धमकी मिली या जेल में ठूंस दिया गया या फर्ज़ी केस में फंसा दिया गया. ज़ाहिर है, सालों से जंग लगी व्यवस्था और सामंती मानसिकता वाली नौकरशाही इस बात को हज़म नहीं कर पाती कि कोई आम आदमी उनसे सवाल पूछे. आम आदमी उनकी सत्ता को चुनौती न दे सके या सवाल न पूछ सके, इसलिए ये लोग साम, दाम, दंड, भेद का भी सहारा लेने से भी नहीं चूकते. लेकिन इससे डरने की ज़रूरत नहीं है. हां, थोड़ी समझदारी से काम लेना होगा. चौथी दुनिया ने जो अभियान शुरू किया है वह आपको बताएगा कि ऐसे अधिकारियों से कैसे निपटना है, इनसे क्या पूछना है और कैसे पूछना है. बस, आप सवाल करने से डरें नहीं.
सूचना मिलने के बाद क्या करें.
यह देखा गया है कि सवाल पूछने भर से ही कई बिगड़ी बातें रास्ते पर आने लगती हैं. उदाहरण के लिए, केवल अपनी अर्जी की स्थिति पूछने भर से आपको अपना पासपोर्ट या राशन कार्ड मिल जाता है. यदि आपने आरटीआई से किसी भ्रष्टाचार या ग़लत कार्य का पर्दाफ़ाश किया है तो आप सतर्कता एजेंसियों या सीबीआई को इस बारे में शिक़ायत कर सकते हैं. इसके अलावा आप एफआईआर भी करा सकते हैं. लेकिन देखा गया है कि सरकार दोषी के विरुद्ध, लगातार शिक़ायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं करती. यद्यपि कोई चाहे तो सतर्कता एजेंसियों पर भी शिक़ायत की वर्तमान स्थिति के बारे में आरटीआई के  तहत पूछकर दबाव अवश्य बना सकता है. इसके अलावा ग़लत कार्यों का पर्दा़फाश मीडिया के ज़रिए भी किया जा सकता है. एक बात तय है कि इस प्रकार सूचनाएं मांगना और ग़लत कामों का पर्दा़फाश होने से अधिकारियों में यह स्पष्ट संदेश जाता है कि अमुक क्षेत्र के  लोग अधिक सावधान हो गए हैं और भविष्य में इस प्रकार की कोई ग़लती पूर्व की भांति छुपी नहीं रहेगी.
क्या ऐसे लोगों को निशाना बनाया गया है जिन्होंने आरटीआई का प्रयोग कर भ्रष्टाचार का पर्दा़फाश किया?
हां, ऐसे कुछ उदाहरण हैं जिनमें लोगों को शारीरिक हानि पहुंचाई गई जब उन्होंने भ्रष्टाचार का बड़े पैमाने पर पर्दा़फाश किया. लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रार्थी को हमेशा ऐसा भय झेलना ही होगा. अपनी शिक़ायत की स्थिति या मामलों की जानकारी लेने के लिए अर्जी लगाने का अर्थ आ बैल मुझे मार  वाली नहीं है. ऐसा तब होता है जब कोई सूचना नौकरशाह- ठेकेदार की मिलीभगत या किसी माफ़िया का पर्दा़फाश करती हो.
तो फिर, मैं आरटीआई का प्रयोग क्यों करूं?
पूरा तंत्र इतना सड़- गल चुका है कि यदि हम सभी अकेले या मिलकर अपना प्रयत्न नहीं करेंगे, यह कभी नहीं सुधरेगा. यदि हम ऐसा नहीं करेंगे, तो कौन करेगा? हमें करना है. लेकिन हमें ऐसा एक रणनीति बना कर और जोख़िम को कम करके करना होगा.
ये रणनीतियां क्या हैं?
आप आगे आएं और किसी भी मुद्दे पर आरटीआई आवेदन दाख़िल करें. साधारणतया, कोई आपके ऊपर एकदम हमला नहीं करेगा. पहले वे आपकी ख़ुशामद करेंगे ताकि आप अपना आवेदन वापस ले लें. आप जैसे ही कोई असुविधाजनक आवेदन डालते हैं, कोई आपके पास बड़ी विनम्रता के साथ उस आवेदन को वापिस लेने की विनती करने आएगा. आपको उस व्यक्ति की गंभीरता और स्थिति का अंदाज़ा लगा लेना चाहिए. यदि आप इसे का़फी गंभीर मानते हैं तो अपने 15 मित्रों को भी तुंरत उसी कार्यालय में वही सूचना मांगने के लिए आरटीआई आवेदन डालने को कहें.
बेहतर होगा यदि ये 15 मित्र भारत के विभिन्न भागों से हों. अब, आपके  देश भर के 15 मित्रों को डराना किसी के  लिए भी मुश्किल होगा. यदि वे 15 में से किसी एक को भी डराते हैं, तो और लोगों से भी अर्जियां दाख़िल कराएं. आपके मित्र भारत के अन्य हिस्सों से अर्जियां डाक से भेज सकते हैं. इसे मीडिया में व्यापक प्रचार दिलाने की कोशिश करें. इसका एक मतलब यह भी है कि आपके पीछे अनेक लोग हैं. इससे यह सुनिश्चित होगा कि आपको वांछित जानकारी मिलेगी व आप जोख़िमों को कम कर सकेंगे.
 नेशनल आरटीआई अवार्डः सूचना के सिपाहियों का सम्मान
दिल्ली की एक संस्था पीसीआरएफ ने 2009 में एक अवार्ड की शुरुआत की. मक़सद था उन लोगों की हौसला अफजाई और सम्मान, जिन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगाकर भ्रष्टाचार के ख़िला़फ हल्ला बोला, जिन्होंने सूचना क़ानून का इस्तेमाल करके सरकारी व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया. सच और ईमानदारी से काम करने वाले कई आरटीआई कार्यकर्ता को इसकी क़ीमत अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी.उन सभी देश भक्त लोगो को हम सब का सलाम !!!!!
यह सच है कि आरटीआई के अंतर्गत आने वाले आवेदनों की संख्या बहुत बढ़ी है लेकिन अभी भी में इसमें बहुत ज़्यादा इजा़फे की गुंजाइश है. लोगों के बीच आरटीआई के तहत मिलने वाली शक्तियों के बारे में और जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है.......................


सूचना का अधिकार (Right to Information Act): सरकारी पैसा,कामकाज और सूचना पाना जो पहले कभी ना-मुमकिन हुआ करता था आज हर आदमी के बस की बात हो चुका है.

इस अधिकार को ना केवल आम आदमी बल्कि गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाल हर शख्स कर स्कता है और अपने हक के बारे में जानकारी और आँकड़े जुटा सकता है.

लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी होता है इस अधिकार को जन-साधारण त पहुँचाने और उनको उनके अधिकारों के बारे में इंगित करने की.तो आइये पहले हम खुद ही इस बारें में पता लगाते हैं कि क्या है ये सूचना का अधिकार और कैसे ये आम आदमी का अधिकार है

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act) भारत के संसद द्वारा पारित एक कानून है जो 12 अक्तूबर, 2005 को लागू हुआ (15 जून, 2005 को इसके कानून बनने के 120 वें दिन)। भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता है। इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रेकार्डों और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। जम्मू एवं काश्मीर को छोडकर भारत के सभी भागों में यह अधिनियम लागू है।

सूचनाऍ कहाँ से मिलेगी ?
-केन्द्र सरकार,राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन के हर कार्यालय में लोक सूचना अधिकारियों को नामित किया गया है।
-लोक सूचना अधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह जनता को सूचना उपलब्ध कराएं एवं आवेदन लिखने में उसकी मदद करें.

कौन सी सूचनाऍ नही मिलेंगी ?
-जो भारत की प्रभुता, अखण्डता, सुरक्षा, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों व विदेशी संबंधों के लिए घातक हो.

-जिससे आपराधिक जाँच पड़ताल,अपराधियों की गिरफ्तारी या उन पर मुकदमा चलाने में रुकावट पैदा हो.
-जिससे किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा खतरे में पड
-जिससे किसी व्यक्ति के निजी जिन्दगी में दखल-अंदाजी हो और उसका जनहीत से कोई लेना देना ना हो.

स्वयं प्रकाशित की जाने वाली सूचनाऍ कौन सी है ?
-हर सरकारी कार्यालय की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने विभाग के विषय में निम्नलिखित सूचनाऍ जनता को स्वयं दें

-अपने विभाग के कार्यो और कर्तव्यों का विवरण ।
-अधिकारी एवं कर्मचारियों के नाम, शक्तियाँ एवं वेतन ।
-विभाग के दस्तावेजों की सूची ।
-विभाग का बजट एवं खर्च की व्यौरा ।
-लाभार्थियों की सूची, रियायतें और परमिट लेने वालों का व्यौरा।
-लोक सूचना अधिकारी का नाम व पता

सूचना पाने की प्रक्रिया क्या है?
-सूचना पाने के लिए सरकारी कार्यालय में नियुक्त लोक सूचना अधिकारी के पास आवेदन जमा करें । आवेदन पत्र जमा करने की पावती जरुर लें ।
-आवेदन पत्र के साथ निर्धारित फीस देना जरुरी है ।
-प्रतिलिपि/नमूना इत्यादि के रुप मे सूचना पाने के लिए निर्धारित शुल्क देना जरुरी है

सूचना देने की अवधि क्या है ?

सूचनाऍ निर्धारित समय में प्राप्त होंगी
-साधारण समस्या से संबंधित आवेदन 30 दिन
-जीवन/स्वतंत्रता से संबंधित आवेदन 48 घंटे
-तृतीय पक्ष 40 दिन
-मानव अधिकार के हनन संबंधित आवेदन 45 दिन

सूचना पाने के लिए आवेदन कैसे बनाऍ ?
-लोक सूचना अधिकारी, विभाग का नाम एवं पता ।
-आवेदक का नाम एवं पता ।
-चाही गई जानकारी का विषय ।
-चाही गई जानकारी की अवधि ।
-चाही गई जानकारी का सम्पू्र्ण विवरण ।
-जानकारी कैसे प्राप्त करना चाहेंगे-प्रतिलिपि /नमूना/लिखित/निरिक्षण ।
-गरीबी रेखा के नीचे आने वाले आवेदक सबूत लगाएं ।
-आवेदन शुल्क का व्यौरा-नकद, बैंक ड्राफ्ट, बैंकर्स चैक या पोस्टल ऑडर ।
-आवेदक के हस्ताक्षर, दिनांक ।

सूचना न मिलने पर क्या करे ?
-यदि आपको समय सीमा में सूचना नहीं मिलती है, तब आप अपनी पहली अपील विभाग के अपीलीय अधिकारी को, सूचना न मिलने के 30 दिनों के अन्दर , कर सकते हैं ।
-निर्धारित समय सीमा में सूचना न मिलने पर आप राज्य या केन्द्रीय सूचना आयोग को सीधा शिकायत भी कर सकते हैं ।
-अगर आप पहली अपील से असंतुष्ट है तब आप दूसरी अपील के फैसले के 90 दिनों के अन्दर राज्य या केन्द्रीय सूचना आयोग को कर सकते हैं ।

सूचना न देने पर क्या सजा है ?
लोक सूचना अधिकारी आवेदन लेने से इंकार करता है, सूचना देने से मना करता है या जानबुझकर गलत सूचना देता है तो उस पर प्रतिदिन रु. 250 के हिसाब से व कुल रु. 25,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है

अपील कैसे करे ?
-अपीलीय अधिकारी, विभाग का नाम एव पता।
-लोक सूचना अधिकारी जिसके विरुद्ध अपील कर रहे हैं उसका नाम व पता ।
-आदेश का विवरण जिसके विरुद्ध अपील कर रहे हैं ।
-अपील का विषय एवं विवरण ।
-अपीलीय अधिकारी से किस तरह की मदद चाहते हैं ।
-किस आधार पर मदद चाहते हैं ।
-अपीलार्थी का नाम, हस्ताक्षर एवं पता ।
-आदेश , फीस, आवेदन से संबंधित सारे कागजात की प्रतिलिपि

सूचना पाने के लिए निर्धारित शुल्क

विवरण केन्द्र सरकार


आवेदन शुल्क रु. 10/-

अन्य शुल्क ए-4 या ए-3 के कागज के लिए रु. 2/ प्रति पेज
बड़े आकार का कागज/नमूना के लिए वास्तविक मूल्य
फ्लापी या सीडी के लिए रु. 50/-

रिकार्ड निरिक्षण का शुल्क पहला घंटा -नि.शुल्क, तत्पश्चात हर घंटे के लिए रु. 5/-

अदायगी नकद / बैंक ड्राफ्ट / बैंकर्स चैक / पोस्टल आडर्र के रुप में
नोट: गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को कोई शुल्क नही देना पड़ता हैं
सेम्पल आवेदन
सूचना के अधिकार के तहत कुछ मॉडल आवेदन

सामान्य समस्याओं से सम्बंधित आवेदन
  1. किसी सरकारी विभाग में रुके हुए कार्य के विषय में सूचना के लिए आवेदन
  2. गलियों तथा सड़कों से जुड़े कार्यों का पूर्ण विवरण
  3. सड़क की मरम्मत का विवरण
  4. सड़क की खुदाई का विवरण
  5. सफाई की समस्या - स्वीपर अपना काम सही तरीके से नहीं करते
  6. कूडेदान की सफाई नहीं होना
  7. स्ट्रीट लाइट काम नहीं कर रही है
  8. पानी की समस्या
  9. बागवानी (पार्क) की समस्या
  10. स्कूल में अध्यापक या अस्पताल में डॉक्टर का न आना या देर से आना
  11. अस्पताल में दवाइयों की कमी
  12. मध्याहन भोजन योजना का विवरण
  13. यूनिफॉर्म/किताबों के वितरण का विवरण
  14. विद्यालय की मरम्मत व अन्य खर्चे का विवरण
  15. विद्यालय में वजीफा का विवरण
  16. राशन का विवरण
  17. बी.पी.एल के चयन के लिए किये गये सर्वे का विवरण
  18. वृद्वावस्था एंव विधवा पेंशन के आवेदन पर हुई कार्यवाही का विवरण
  19. वृद्वावस्था/विधवा पेंशन का विवरण
  20. व्यवसायीकरण
  21. अतिक्रमण
  22. किसी वार्ड में हुए कामों की सूचना
  23. विधायक/ सांसद विकास निधि का विवरण
  24. जन शिकायत निवारण व्यवस्था
  25. भ्रष्टाचार से सम्बंधित शिकायतों की स्थिति
  26. सरकारी वाहनों का दुरूपयोग
  27. कार्यों का निरीक्षण
विशेषत: ग्रामीण समस्याओं से सम्बंधित आवेदन
  1. हैण्डपम्पों का विवरण
  2. विद्युतिकरण का विवरण
  3. ग्राम पंचायत की भूमि एवं पट्टे का विवरण
  4. ग्राम पंचायत के खर्चे का विवरण
  5. ए.एन.एम से सम्बंधित विवरण
  6. एन.आर.ई.जी.ए. के तहत जॉब कार्ड, रोजगार व बेरोजगारी भत्ता का विवरण
  7. रोजगार गारंटी के तहत मांगे गये काम का विवरण
  8. रोजगार गारंटी के तहत जॉब कार्ड के आवेदन का विवरण
  9. इन्दिरा आवास योजना का विवरण

ज्यादा जानकारी के लिये पता है और वेबसाईट भी है

केन्द्र सूचना आयोग
ब्लाँक न. 4, पाँचवी मंजिल, पुराना जे.एन.यू. कैम्पस,
नई दिल्ली-110 067, वेबसाइट: cic.gov.in , फोन/फैक्स -011-26717354

सूचना का अधिकार क़ानून से संबंधित किसी भी सुझाव या परामर्श के लिए आप  ई-मेल कर सकते हैं या पत्र लिख सकते हैं.  ई-मेल rti@chauthiduniya.com
or write your questions or comments below in comment box
RTI Helpline :  09718100180

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